प्रेम कविता
प्रेम की वास्तविक परिभाषा हमें भगवान शिव से सीखनी चहिए। दुनिया वाले भी प्रेम करते हैं मगर सिर्फ़ उस वस्तु को जो उनके उपयोग की हो। अनुपयोगी अथवा बिना कारण किसी से अगर कोई प्रेम करता है तो वो भगवान शिव ही हैं। इसलिए वो भूत भावन भी कहलाते हैं।
भूतों से प्रेम करना अर्थात समाज में उन लोगों से भी प्रेम करना जो समाज द्वारा तिरस्कृत हों अथवा समाज जिन्हें उपेक्षित समझता हो व उनसे नफरत करता हो।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि
धरती पराई लगने लगे,
इतनी खुशियाँ भी न देना,
दुःख पर किसी के हंसी आने लगे।
नहीं चाहिए ऐसी शक्ति
जिसका निर्बल पर प्रयोग करूँ,
नहीं चाहिए ऐसा भाव
किसी को देख जल-जल मरूँ।
ऐसा ज्ञान मुझे न देना
अभिमान जिसका होने लगे,
ऐसी चतुराई भी न देना
लोगों को जो छलने लगे।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर
कि धरती पराई लगने लगे ।